Month: April 2007

एक नज़्म तन्हाई पर

तन्हाई का आलम मुझे हर कहीँ घेर लेता हैं भीड़ में भी तनहां होने का गुमां होता है की तनहां आये हैं, तनहां ही चले जाना है, फीर भी तनहां रहने से दिल बेजाँ परेशां क्यों है तन्हाई का आलम मुझे हर कहीँ घेर लेता है भीड़ में भी तन्हाई का गुमां होता है वो पूछते हैं …