Month: May 2007

दिल की कलम से

किसी ने कभी सही कहा था…कि दीखता है मंजर असलीबजते हैं साज़ सारे…जब छेड़ दो तार दिल केनहीं मालुम क्यों….तुमने आवाज़ दी …और हम रो दिए ….आंसुओं की जगह कलम सेकागज़ पर येशब्द बिखेर दिए …