Month: August 2008

दर्द-ऐ-दिल

कि अभी तो हुई शुरू बात दिल कि हैऔर अभी तुम जाते होकि अभी तो नासूर–ऐ–दिल को छेड़ा हैऔर तुम जाते होकि अभी तो खून–ऐ–जिगर बाकी हैऔर तुम जाते हो ऐ दोस्त जुल्म यूँ न करन हो गर हिम्मत–ऐ–नज़र छेड के दास्ताँ–ऐ–जिगर हमें यूँ बेजार न कर

गर तुम पिलाओ मदिरा

गर तू अपने होंठों से मदिरा पिलाए तो मैं पी लूँकि तेरे हाथों से में बहुत मदिरा पी चुकागर तू अपने लबों से पिलाए तो मैं पी लूँकि तेरी आखों से मैं बहुत पी चुकागर भर अधर का प्याला पिलाए तो मैं पी लूँकि तेरे केसुओं की लटों से मैं बहुत पी चुकाऐ साकी गर …