कशमकश

सोचते हैं अक्सर
कि कुसूर क्या है हमारा
यूँ क्यों होता है दर्द दिल में
कहते हैं फलसफा ज़िन्दगी का
आज जब कहा उनसे
कि दिक्कते यूँ पेश आती हैं
कह दिया उन्होंने भी
वही शिकवा हमसे
रुसवा ईन हो गए वो
कि मोड़ लिया रुख हमसे
सोचा न एक पल को
की हम कहाँ जाएंगे
छोड़ हमें चले वो राह अपनी
ना जाने कब आएँगे
ज़िन्दगी तुझसे क्या कहें हम
कि सोचते हैं अक्सर यूँही
मिलेगा कभी कोई हमें
जो सुन सके दास्ताँ हमारी

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