नाम गर लिखा हो सनम का शाम पर
जा उसके आगोश में उसका दीदार कर
उसकी साँसों के तरन्नुम में खो कर
अपने इश्क का इज़हार कर
गर ना हो एतबार अपने लबों पर
अपनी आँखों से तू बयान कर
गर गिला हो कोई तो खुदा से अर्ज़ कर
मिलेगा तुझे भी सनम इंतज़ार कर
कि है क्या मज़ा उस दीदार में
जिसकी नज़्म ना लिखी हो इंतज़ार में
हर लफ्ज़ जिसका लिखा हो तेरे आंसुओं से
हर कतरा जिसका सींचा हो तेरे लहू से
कि गर सनम का नाम लिखा हो शाम पर
कहता यही है फ़कीर – इंतज़ार कर इंतज़ार कर
Comments
Hmmm… and after reading this i was scratching my bum for 45 min…. hahaha
Ha ha Vaibhav Sir, this is something that churned out after around 45 minutes of brain scratching 😛
heavy on mind! huh!