कि हया शर्म लाज लज्जा है तो इन आँखों में
पर कहीं गहराई में छुपी है किसी कि खामोशी
दुनिया को दिखती है सिर्फ इनकी मासूमियत
कि छिपी है कहीं इनमें कोई सच्चाई
है तो कुछ गहराई इन आँखों में
कि दिल का दर्द इनमें सिमट आता है
कुछ तो है इन आँखों में
कि होठों कि मुस्कान तक दबा जाता है
पर कहीं गहराई में छुपी है किसी कि खामोशी
दुनिया को दिखती है सिर्फ इनकी मासूमियत
कि छिपी है कहीं इनमें कोई सच्चाई
है तो कुछ गहराई इन आँखों में
कि दिल का दर्द इनमें सिमट आता है
कुछ तो है इन आँखों में
कि होठों कि मुस्कान तक दबा जाता है