काफिर

कौन कमबख्त कहता है तुझे काफिर
गर बात मेरी करते हो ऐ जानिब
तो जानो कि मैंने खुदाई को रुसवा किया है 
अक्स पे मैंने खून-ऐ-रोशनाई से ज़िक्र किया है
कि इबादत हम खुदा की क्या करें 
जब खुदा ने ही ज़ख्म बेमिसाल दिया है
कि आलम कुछ इस क़द्र है बेसब्र खुदा का
ना वो मुझे जन्नत ना जहन्नुम दे सकता है
कौन कमबख्त कहता है तुझे काफिर
कि हश्र मेरा देख, मुझे तो दोज़ख नसीब ना हुआ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *