यादें गर खामोश कर जाती तो न होता ये दिल बेचैनना होते रूबरू इस कदर गम-ऐ-जिंदगी सेशामों तन्हाई ना करती इस कदर गुफ्तगूंना होती जिंदगी में गहरी ज़ुत्सजु वादे उनके यूँ बेसब्र ना कर जातेगर बातों में उनकी शान-ऐ-वफ़ा ना होतीबातें उनकी जो आती है याद तुम्हेंसाबित कर जाती हैं ईमान उनका कुछ थे वो …
Month: April 2011
मौसम तो है वही पुराना लौट आई पुरवाई भी ना जाने क्यूँ लगता है की हो तन्हाई और वो नहीं सोचने पर हम मजबूर हुए, पूछा हमने खुदा से भी समझ न सके ये दुरियाँ, यादों के साये में भी इन्तहा लगती ये आरज़ू-ऐ-इश्क की है कि आरज़ू की है ये जूत्सजू ये दिल डूबा …