Month: June 2011

नासूर

आज वो गुज़ारा ज़माना याद आता हैहर एक बिता पल याद आता हैजिंदगी ने दिया जो ज़ख्मवो नासूर बन उभर आता हैक्या खता थी मेरी ऐ खुदाकि मने जिंदगी से ये सिला पाया हैना कोई रंज न कोई गिला कर सकते हैंकि दिल-ऐ-नासूर इतना गहरा पाया है

तलाश-ऐ-अक्स

ज़िन्दगी में अपना अक्स खोजता हूँरात–ओ–सहर आइना देखता हूँवक्त का दरिया है की थमता नहींउम्र का आँचल है की रुकता नहीं सोचता हूँ यूँही अक्सरसुलझाता नहीं क्यों ये भंवरमझधार में ना जाने क्यूँतलाशता हूँ मैं हमसफ़रज़िन्दगी में ना जाने क्यूँखत्म सी नहीं होती तलाशकि मौत कि और बढते हुए खोजता हूँ ज़िन्दगी के माने

इल्तेजा

शाम–ऐ–गम को रंगीन करके ख्वाबों में तेरे खोए रहते हैंगर भूले से आओ सामने तुम तो ख्वाब समझ कर सोये रहते हैंजुल्फों के साए में छुपा लो तुम कि जिंदगी से रुसवा हुए जाते हैंयादों में बसा लो आज हमें कि बाँहों में बेदम हुए जाते हैं रुख ना मोडो इस कदर बेरूख होकर ऐ …