दिल का दर्द कलम से उतर कागज पर बह गया
बहते बहते वो कागज़ पर एक स्याह लकीरें छोड़ गया
बहते बहते वो कागज़ पर एक स्याह लकीरें छोड़ गया
इन लकीरों में जिंदगी की चुभन थी
बीतें उन तन्हा लम्हों की सिमटन थी
सोचा न था कि कलम यूँ बेवफा निकलेगी
हमारे ही दर्द को हमारी आँखों के सामने रखेगी
सोचा न था हमारे शब्द यूँ बेगार होंगे
बेरूख हो दुनिया से बेजार करेंगे
सोचा न था कि कलम यूँ बेवफा निकलेगी
हमारे ही दर्द को हमारी आँखों के सामने रखेगी
सोचा न था हमारे शब्द यूँ बेगार होंगे
बेरूख हो दुनिया से बेजार करेंगे