Month: January 2012

चंद अल्फाज़ – महफ़िल में शायर की रुसवाई पर

एक महफ़िल कि खामोशी, एक शायर का इन्तेकाल हो सकती है|  उसपर चंद अल्फाज़ ज़ेहन में आये थे, पेश करता हूँ – नगमें अफसानों के गाते हो और हमें दिवाना कहते हो अरे हमने दिल दिया है, किसी का दिल तोडा तो नहीं   हमें बेवफा, बेगैरत, बेज़ार क्या कहते हो हम किसी के दिलों …

देवस्थली का मरघट

काव्य की इन पंक्तियों मेंलहू के दो रंग दिखते हैंशिव शम्भू की इस धरती परनरमुंड और कंकाल ही दिखते हैं अग्नि जो आज प्रज्वल्लित हुईकर रही नरसंहार हैविस्फोटों की इस गर्जन सेगूँज रही प्रकृति अपार है… मुकुट भारत के शीश काआज रक्त से सराबोर हैदेवों का निवास था जो कभीशान्ति का वहाँ अकाल है इतने …

स्मृति

शहर छोड़ चले हमचले अज्ञात अंधियारों मेंस्मृति बस रह गयी हैं उन गलियों चौबारों की जहाँ खेल हम बड़े हुएजहाँ सीखा हमने चलनाबोल चाल की उस दुनिया सेचले होकर हम अज्ञानी  राह बदली शहर बदलेबदली हमारी चाल भीना बदला कुछ तोथी वो हमारी स्मृति ही भूलना चाहा बहुत हमनेचाह थी कुछ ऐसी हीछोड़ चले थे …

हिम की धधकती ज्वाला

हिम की सिल्लियाँ उडी हवा मेंसाथ उडी कुछ मानव देह भीसर्द इस संध्या में गूंज उठी घाटीगर्जन हुई ऐसी, दहल गयी दिल्ली भी श्वेत चादर से ढंकी ये घाटी थी कभी शांती का प्रतीक आज सजी है ये लहू सेधधकती कुछ ज्वाला सी ज्वाला जो प्रज्वलित करती देवों की दीपमाला कोआज प्रज्वलन कर रही वोइस …

हाल-ऐ-बयाँ

ज़र्रा रोशनाई जिसे कहते हो तुम कतरा-ऐ-खून-ऐ-जिगर है दीवानापन जिसे कहते हो तुम तुम्हारी मोहब्बत का आलम है कतरा कतरा जीते हैं बिन तुम्हारे तन्हा तन्हा सफर करते हैं यादों में आज बसे हैं वो दिन जो बस बेसहारा गुज़ारे हैं गर सोचते हो तुम कुछ यूँ कि हम बेज़ार कैसे जीते हैं तो ज़रा …

मेरा देश

तकनिकी रूप में प्रगतिशील है मेरा देशफिर भी विचारात्मक रूप से गरीब है आज विश्व में द्वितीय सबसे बड़ा है येफिर भी गरीबों से भरा है मेरा देश कमी नहीं है धन और धान्य की यहाँकिन्तु जमाखोरों की तिजोरी में भरा हैहैं बहुत सी संपत्ति, धरोहर मेरे देश कीकिन्तु अन्य देशों में जमा है सब …

आलम-ऐ-मोहब्बत

नज़रें हमारी जो उठीं, नज़ारे ना दिखेगर कुछ दिखा तो उनके चेहरे का नूरकिन निगाहों से हम उन्हें देखें कि दिखते हैं वो इश्क में चूर उन्हें देख उनकी निगाहों को ना देखेंकि उनमें हमारा ही अक्स नज़र आता है गर हया-ऐ-मोहब्बत में पलकें झुकाएं तो पैमाना-ऐ-शबनम में उनका नूर नज़र आता है नजदीकियां तो …

अंदाज़-ऐ-लफ्जात

चंद लाफ्जात ऐसे होते हैं, जिन्हें सुन कर रूह से एक आह निकलती है…..आज ऐसे ही कुछ कलाम पढ़ा तो एक रूह कि आह पर कुछ लफ्जात हमारे भी निकल पड़े….  पेश-ऐ-नज़र है वो चंद लफ्ज़ जिन्होंने हमारे कलाम को जन्म दिया – बयाँ ना कर पाई ज़ुबान जो लड़खड़ाई हम पे इल्ज़ाम बेवफ़ाई का! …

निवेदन

जीवन में ये स्थिरता ये ठहराव क्यों हैक्यों लगता है कि कुछ कम हैतेरे आने से पहले जो ना थातेरे आने के बाद आज सब है यदि आज कुछ कहीं कम है   तो है तेरे आलिंगन की अनुभूतीहै  वो मधुर मध्धम वाणी के बोलकम है आज समय तेरे साथ बिताने को ज्ञात है मुझे …