ज़र्रा रोशनाई जिसे कहते हो तुम
कतरा-ऐ-खून-ऐ-जिगर है
दीवानापन जिसे कहते हो तुम
तुम्हारी मोहब्बत का आलम है
कतरा कतरा जीते हैं बिन तुम्हारे
तन्हा तन्हा सफर करते हैं
यादों में आज बसे हैं वो दिन
जो बस बेसहारा गुज़ारे हैं
गर सोचते हो तुम कुछ यूँ
कि हम बेज़ार कैसे जीते हैं
तो ज़रा झांको अपने पहलू में
जहाँ हम दिल हार बैठे हैं
तन्हा तन्हा सफर करते हैं
यादों में आज बसे हैं वो दिन
जो बस बेसहारा गुज़ारे हैं
कि हम बेज़ार कैसे जीते हैं
तो ज़रा झांको अपने पहलू में
जहाँ हम दिल हार बैठे हैं