शहर छोड़ चले हम
चले अज्ञात अंधियारों में
स्मृति बस रह गयी हैं
उन गलियों चौबारों की
चले अज्ञात अंधियारों में
स्मृति बस रह गयी हैं
उन गलियों चौबारों की
जहाँ खेल हम बड़े हुए
जहाँ सीखा हमने चलना
बोल चाल की उस दुनिया से
चले होकर हम अज्ञानी
राह बदली शहर बदले
बदली हमारी चाल भी
ना बदला कुछ तो
थी वो हमारी स्मृति ही
भूलना चाहा बहुत हमने
चाह थी कुछ ऐसी ही
छोड़ चले थे बांधवों को
छोड़ आये हम खुद को भी
Comments
Comment as received on mail –
Trapped in my past
I've lowered my mast
Of the great happening world
Left my flag unfurled
Thanks to my friend Bhaskar C