अधूरे छंद

कैसा ये मायाजाल है, है कैसा ये बंधन
या है ये तेरे प्रेमजाल का ही सम्मोहन
है ये कोई दिवास्वप्न या मेरा ही भरम
तेरे आगे क्यों छोटा लगता है हर करम||
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निद्रागोश में स्वप्न में तू दिखती है
हर समय कानो में तेरी वाणी बसती है
ना चाह भी तेरे प्रेमजाल में बिंध जाता हूँ
तेरे नैनो के प्रेम सागर में खो जाता हूँ||
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