मयंक ने शायद 1999 में ये कविता मुझे सुनाई थी| आज कुछ पुराने पन्नों से वो सामने आई तो सोचा मयंक की कविताओं के इस समूह में उसे भी जोड़ दूं – कविता तुम पर क्या कविता लिखूँकि तुम खुद प्राकृतिक कविता होतुम्हारी सादगी और शालीनता नेतुम्हारे सौंदर्य को और भी निखारा है|| उस पल …
Month: April 2012
घणी राह देखी आपरी घणी बाट जोईकटे ढूँढू असो जग जो आपे फरमाईना असो जग कठे मलिए ना आप पधारोअरे म्हारा भाई सा अठे यो रूप ना धारो एक आप म्हारी फरमाइश सुनता जाजोजो जग मा जी ना लागे आपरो आजसोजो भावे ना आपरे मिजाज दोस्तां रोएक बार, बस एक बार म्हारे घर आवजो चोखट …
जिंदगी कि जद्दोजहद में इस कदर उलझेकि गम-ऐ-उल्फत में लफ्ज़ बेजार हो गएमोहलत कुछ दिनों की गर मिल जाएतो आपसे हम फिर रूबरू होंगे Lost out in the world in such a fashion that the words have dried up. Apologies, but if I get time out for sometime, I would surely be back here….
तेरी तन्हाई में भी मेरा साया तेरे साथ हैगर नज़र उठाए तो देख मेरा अक्स तेरे साथ हैना तू कर गिला उनसे अपने गम-ओ-उल्फत काना कर तू शिकवा जिंदगी केदोराहे काउठ ऐ मुसाफिर तू चलाचल राह अपनीकि तेरी मंजील तक ये बंदा तेरे साथ है शिद्दत से जिस जिंदगानी की तुझे तलाश हैउस मंजिल तक …
I only love to love you the way I doI only see to see you the way I doI only care for you to care the way I doI only feel to feel you the way I do Never in life I wanted you more than I doNever in life I felt to see you …
मौसम-ऐ-जज़्बात में बहकर रिश्ते नहीं तोडा करतेअपनी ही जिंदगी की ज़मीन पर कांटे नहीं बोया करतेतूफानों से गुजारते हुए आँसमां नहीं देखा करतेज़मीन से गर जुड जीना है तो शाखों पे घरोंदे नहीं बनाया करते मौसम-ऐ-जज्बात में बहकर रिश्ते नहीं तोडा करतेकाँटों से गर डरते हो तो फूलों से नाते नहीं जोड़ा करतेतन्हाई से गर …
मानव के कोतुहल का कोलाहलनष्ट कर रहा आज धरा धरोहर कोदानव शक्ति में झूम रहा है वो आजकर रहा अशांति का तांडव नृत्य देवों की इस भूमि पर दास बना वो दानव काअपने ही हाथों से काल ग्रास बना रहा बांधवों कोभूल कर प्रकृति की प्राथमिकता कोभूल रहा है धरा पर संस्कृति की धारा को …
अभी अभी कुछ पंक्तियाँ पढ़ी जिसमें हीर रांझे से बोलती है कि सब छोड़ मेरे पास आजा| वे पंक्तियाँ पढ़ कर मष्तिस्क में उन्माद हुआ और कुछ पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार बनी – ना बिन तेरे जग मेरा हीरिये, ना बिन तेरे ये जीवन छोड़ के सब में आयूँ दर तेरे, ना बिन तेरे मुझे …
हरियाली की चादर ओढ़ेमहक रही है वसुंधराबादलों का वर्ण ओढ़ेथीरक रहा अम्बर भी नदियों में बहता पानीमानो गा रहा हो जीवन संगीतपांखियों के परों को देखमानो नृत्य कर रही अप्सराएं खेतों में लहलहाती उपजफैला रही सर्व खुशहालीसुंदरता की प्रतिमूर्ति बनप्रकृति कर रही अठखेलियाँ कितना स्वर्णिम है ये जगतजिसमें रहता मानस वर्गक्यों आज व्यस्त है वोनष्ट …
It’s time when one wishes to dieNo more does one wish to hear nayIt’s tough to face the rhythm of lifeWhen one is left to face the depth of sky They say that one played the gameWith no remorse and no shameWhy they just don’t look at thy selvesWhy just they clean their own shelves …