आसिम-ऐ-इख्लास

इश्क-ऐ-वफ़ा से वो रूबरू ना हुए कभी
और हमसे माने वफ़ा के पूछे जाते हैं
रूह से अपनी किसी को चाह ना सके वो
और हमसे मोहब्बत के माने पूछे जाते हैं

एतबार वो खुद का ना कर सके ता उम्र
और हमें माने एतबार के समझाए जाते हैं
तसव्वुर-ऐ-दर्द हमारा ना सुन सके कभी
और हमसे ही अपनी तकलीफ बयाँ किये जाते हैं

हमारे दीदार को खुद बेचैन रहते थे वो
अब हमें ही बदनाम किये जाते हैं
खुद इश्क के पैगाम कहलाते थे हमसे
अब हमें आसिम-ऐ-इख्लास कहे जाते हैं

इश्क-ऐ-वफ़ा से वो रूबरू ना हुए कभी
और हमसे माने वफ़ा के पूछे जाते हैं
एतबार वो खुद का ना कर सके ता उम्र
और हमें माने एतबार के समझाए जाते हैं

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