मानव के कोतुहल का कोलाहल
नष्ट कर रहा आज धरा धरोहर को
दानव शक्ति में झूम रहा है वो आज
कर रहा अशांति का तांडव नृत्य
नष्ट कर रहा आज धरा धरोहर को
दानव शक्ति में झूम रहा है वो आज
कर रहा अशांति का तांडव नृत्य
देवों की इस भूमि पर दास बना वो दानव का
अपने ही हाथों से काल ग्रास बना रहा बांधवों को
भूल कर प्रकृति की प्राथमिकता को
भूल रहा है धरा पर संस्कृति की धारा को
होड लगी है अस्त्रों की, कर रहा वो अस्त्र साधना
भूल कर देवों की करनी को बन रहा है भस्मासुर
औरों से आगे बढने की मानसिकता में
भटक रहा पथिक धरा पर मानव धर्म से
घृणा की भावना में कर रहा घोर उन्माद
दानव भक्त बन कर रहा मौत का तांडव
भूल कर प्रकृति की प्राथमिकता को
अपमानित कर रहा मानव संस्कृति को