हरियाली की चादर ओढ़े
महक रही है वसुंधरा
बादलों का वर्ण ओढ़े
थीरक रहा अम्बर भी
महक रही है वसुंधरा
बादलों का वर्ण ओढ़े
थीरक रहा अम्बर भी
नदियों में बहता पानी
मानो गा रहा हो जीवन संगीत
पांखियों के परों को देख
मानो नृत्य कर रही अप्सराएं
खेतों में लहलहाती उपज
फैला रही सर्व खुशहाली
सुंदरता की प्रतिमूर्ति बन
प्रकृति कर रही अठखेलियाँ
कितना स्वर्णिम है ये जगत
जिसमें रहता मानस वर्ग
क्यों आज व्यस्त है वो
नष्ट करने धरा की धरोहर को
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Dhara ri dharohar ri ginatee mein, khud aadam ro bhi naam aave, pan dekh logaan ne, bas marataa maarta jeeve