मौसम-ऐ-जज़्बात

मौसम-ऐ-जज़्बात में बहकर रिश्ते नहीं तोडा करते
अपनी ही जिंदगी की ज़मीन पर कांटे नहीं बोया करते
तूफानों से गुजारते हुए आँसमां नहीं देखा करते
ज़मीन से गर जुड जीना है तो शाखों पे घरोंदे नहीं बनाया करते

मौसम-ऐ-जज्बात  में बहकर रिश्ते नहीं तोडा करते
काँटों  से गर डरते हो तो फूलों से नाते नहीं जोड़ा करते
तन्हाई से गर डरते हो तो अपनों में मुख नहीं मोड़ा करते
मोहब्बत का सिला ना मिले तो चाहत से नाता नहीं तोडा करते

ज़मीन से गर जुड जीना है तो परिन्दों से उड़ा नहीं करते
जिंदगी में गर ग़मों से खौफ है तो अपनों से मुख नहीं मोड़ा करते
खून-ऐ-रोशनाई से गर डरते हो तो नगमें नहीं गुनगुनाया करते
मौसम-ऐ-जज़्बात में बहकर रिश्ते नहीं तोडा करते

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