मेरी कविता की पक्तियां
करती हैं जीवन वर्णन
सार है इनमें जीवन का
ये हैं मेरे जीवन का अभिन्न अंग
इनसे कैसे में दूर रहूँ
कैसे तोडूं में इनसे नाता
जब जी भर आता है मेरा
तब साथ इन्ही का मिलता
ना मुझ बिन ये हैं इस जग में
ना बिन इनके मेरा कोई अस्तित्व
छोड़ चाहे में जग दूं कभी
ये रहेंगी जग में बनकर मेरा रूप
करती हैं जीवन वर्णन
सार है इनमें जीवन का
ये हैं मेरे जीवन का अभिन्न अंग
इनसे कैसे में दूर रहूँ
कैसे तोडूं में इनसे नाता
जब जी भर आता है मेरा
तब साथ इन्ही का मिलता
ना मुझ बिन ये हैं इस जग में
ना बिन इनके मेरा कोई अस्तित्व
छोड़ चाहे में जग दूं कभी
ये रहेंगी जग में बनकर मेरा रूप