उठो भारत के निर्लज्ज कपूतों

पावन धरा पर राज करते कपूतों
अब तो निद्रगोश से निकलो
भटक रहा राष्ट्र में हर पथिक
अब तो अपने लोभ त्यागो


उठो भारत माता के निर्लज्ज कपूतों
कुछ तो संकोच करो
राष्ट्र निर्माण कार्य में
कुछ तो नव प्राण भरो


नव निर्माण कर इस धरा पर
जन जीवन का मार्ग दर्शन करो
उठो धरा के निर्लज्ज कपूतों
कुछ तो जीवन में संकोच करो


भोर भई नव दिवस की
नब युग का तुम संचार करो
प्रगति की ज्योत जला 
दुर्गम अंधियारा दूर करो


उठो धरा के निर्लज्ज कपूतों
कुछ तो अब तुम काज करो
राष्ट्र निर्माण में ध्या लगाकर
जन जन में नयी उमंग भरो


आज तुम अपने जीवन में
नयी एक तरंग भरो
गाँव गाँव में जाकर तुम
जन जीवन से न्याय करो


हर गाँव का अपना दुःख है 
हर गाँव का अपना ही रोना
उठो धरा के निर्लज्ज कपूतों
आज तुम उनके अश्रु पोंछो


नवयुग के संचार में तुम
वीणा सी एक तान भरो
नए रूप में, नए रंग में
प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण करो


उठो धरा पर राज कर रहे कपूतों
इस धरा का श्रृंगार करो
भविष्य सबका मंगलमय हो
इस प्रकार कुछ श्रजन करो


उठो भारत के निर्लज्ज कपूतों 
राष्ट्र कल्याण के लिए तुम 
श्रजन करो विद्या के पावन मंदिर
उठो धरा के निर्लज्ज कपूतों 
शत शर दीप जला ज्ञान के
सुनहरे भविष्य का आह्वान करो
उठो धरा के निर्लज्ज कपूतों
त्याग लोभ नवयुग का आह्वान करो||

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