हृद्याग्नी

जीवन में झेले दुःख अत्यंत
सुख की नहीं मुझे कोई आशा
अश्रुओं से में अपने 
हृदयाग्नी भडकाता हूँ
कुछ ऐसे ही मैं इस संसार में 
अपना जीवन यापन करता हूँ
ना ही अब कोई आस है
ना ही निरास जीवन से कोई भय
निर्मोही निरंकार हो चला मैं 
अपने ही ह्रदय को आहात करता हूँ
ना मैं औषध ढूँढता हूँ 
ना करता हूँ वैद से बात
आघात ह्रदय को जब पहुंचता है
आह अधर से निकलती है
फिर भी निर्मम होकर मैं
ये हृदयाग्नी जलाता हूँ
लाज नहीं अब मुझे कोई 
क्योकि ऐसे ही मैं जीवन यापन करता हूँ
जीवन में झेले दुःख अत्यंत
फिर भी में हँसता रहता हूँ
अश्रुयों से अपने ही मैं
हृदयाग्नी भडकाता हूँ
लाज नहीं अब मुझे कोई
क्योकि ऐसे ही मैं जीवन यापन करता हूँ

Comments

  1. Rebellion

    vyartha hai ye jeevan jiski hridayagni desh ke kaam naa aayi
    bahut avsar miley they tujhako par baat teri samajh mein naa aayi
    ab baitha hai munh latkaa ke sochataa hai kya nirmohi
    isi hridayagni mein se tu jalata agar vijay deep
    to desh ka sachcha poot kehalaata

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