इश्क का जोग

बन मुसाफिर चला मैं इश्क की राह पर
ढूँढता था मैं अपना हमसफ़र
ना मिला मुझे हमसफ़र
ना हुई नसीब इश्क की मंजिल
इश्क के जोग ने मेरा अक्स लूटा
इश्क के जोग में मेरा घर छूटा

बन मुसाफिर चला मैं इश्क की राह पर
ना दिन का अहसास था न थी रात की फिकर
बस था मेरे मन में जिंदगी की अगन
था मैं तलाश-ऐ-मंजिल में मगन
इश्क के इस जोग ने मुझसे सब छीना
इश्क के इस जोग ने मेरा चैना लीना

दिन कब ढला कब रात का अँधेरा छाया
न समझा इश्क ने किस कदर कहर बरपाया
धूं धूं कर जल उठा मेरा जिगर
राख हुआ तेरी बाहों का सपना
इश्क के इस जोग ने तुझे मुझसे छीना
इश्क के इस जोग ने मेरा वजूद मुझसे छीना

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