लम्हात उस शाम कुछ अजीब थे
अफ़सुर्दा उन लम्हात में हम थे
मुलाक़ात कुछ उन लम्हात में हुई
जिंदगी जब हमसे रूबरू हुई
अफ़सुर्दा उन लम्हात में हम थे
मुलाक़ात कुछ उन लम्हात में हुई
जिंदगी जब हमसे रूबरू हुई
मंज़र-ऐ-उल्फत में जो मुलाक़ात हुई
जिंदगी चंद सवालात हमसे यूँ कर गई
कि ना कोई जवाब था हमारे पास
ना हमें इल्म उनके जवाबों के वजूद का
चंद सवालात ऐसे पूछे जिंदगी ने
कि मेरा वजूद सिहर उठा
मेरा वजूद जो पूछा ज़िंदगी ने
मेरी रूह तक काँप उठी
सवालात वो ऐसे जिनका कोई जवाब नहीं
बैठा था मैं ऐसे, जैसे मेरी जुबां ही नहीं
सोचा कि सबब-ऐ-मुलाक़ात क्या है
सवाल एक ऐसा, जिसका कोई जवाब नहीं
लम्हात उस शाम कुछ अजीब थे
मंज़र-ऐ-उल्फत में वो मुलाक़ात हुई
चंद जवाब ऐसे पूछे ज़िंदगी ने
जिनका जवाब मेरे खुदा के पास नहीं