जीवन द्वन्द

खड़े जीवन दोराहे पर हम
किस ओर जाएँ हम
एक ओर है कर्म क्षेत्र
दूजी ओर है धर्मं का निवास
जीवन के इस दोराहे पर 
मचा है ह्रदय में ऐसा द्वन्द

गीता का उपदेश है कहता
कर्म क्षेत्र की ओर है बढ़ना
रामायण का सार है कहता
धर्मं क्षेत्र में चुकाना है ऋण
मष्तिष हो चला है अब मूढ़
प्रश्न है जटिल और गूढ़

आज इस दोराहे पर जीवन के
करें कैसे हम चिंतन और मनन
कर्म और धर्मं के युध्ध में
किस ओर जाएँ अब हम
कर्म क्षेत्र में आगे हम बढ़ें
या धर्मं का चुकाएं ऋण

द्वन्द है ह्रदय में ऐसा
जिसमें हार हमारी है
धर्मं की राह चले तो
कर्म को हम खोते हैं
कर्म की राह चले तो
अधर्मी हम कहलाते हैं||

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