Month: August 2012

सुखा सावन

अबके बरस सावन सुखा बीत गया ना पपीहे की प्यास बुझी  ना प्यासी धरती को मिला पानी सूखे खेतों में बैठ, किसान तक रहा अपनी हानि क्या जी रहे हैं इस धरा पर इतने पापी जिनके पाप सह प्यासी धरा है काँपी क्या जन जीवन के लहू से सिंची है धरा कि ना मिली उसे …

यादों की मय्यत

दिन ढले कहीं छाँव दिखती है सूरज की तपिश से रहत मिलती है शाम के समय कदम उठते हैं घर को चलते हुए ये थमते हैं कि कहीं दिल के किसी कोने में याद तेरी मुझे सताती है ठिठके से ये कदम यूँ मुडते हैं कि राह छोड़ घर की मदिरालय ढूंढते हैं दिन ढले …

पहेली – नैनों की भाषा

अठखेलियाँ करते तेरे ये नैना दिल का मेरे हरते चैना ना जाने बोलते ये कौन सी भाषा जाने सुनाते हैं ये कौन सी गाथा अल्हड कहूँ मैं इन्हें या कहूँ चितचोर मृगनयन देख तेरे ह्रदय में जैसे नाचे मोर जब देखूं तेरे नैनों में जागे हर अभिलाषा पर समझ ना पाऊं कहे क्या ये, कहे कौन …

राजनीतिक अराजकता

था वो मेरा देश जिसमे बसा करता था सोहार्द्र आज उस देश को जला रही है इर्ष्या की अगन देखता जिस और हूँ दिखती है बंटवारे की छवि गणतन्त्र कहलाने वाला मायातंत्र का बना निवाला करो या मरो था जिस देश को कभी प्यारा  आज उस देश में गूँज उठा मारो मारो का नारा राजनीति …

वो लम्हा

अनजान हम सफर सिफर का तय कर रहे थे कुछ लम्हात उनसे दूर जी रहे थे वक़्त के दरिया में हम जिंदगी जी रहे थे ना था कोई गिला ना जिंदगी से कोई शिकवा तन्हाई के आलम में हम सबर कर रहे थे कहीं बादलों से घिरे बरसात को तरस रहे थे ना वो रहे …