अठखेलियाँ करते तेरे ये नैना
दिल का मेरे हरते चैना
ना जाने बोलते ये कौन सी भाषा
जाने सुनाते हैं ये कौन सी गाथा
अल्हड कहूँ मैं इन्हें या कहूँ चितचोर
मृगनयन देख तेरे ह्रदय में जैसे नाचे मोर
जब देखूं तेरे नैनों में जागे हर अभिलाषा
पर समझ ना पाऊं कहे क्या ये, कहे कौन भाषा
छंद कहूँ, कविता लिखूं, करूँ कैसे मैं अभिव्यक्ति
देख तेरे नैनों में रही ना अब ये शक्ति
अठखेलियाँ करते तेरे ये नैना, हरते मेरा चैना
अनजान उनकी भाषा से, दूभर है मेरा जीना
आज बैठ संग तू मेरे बूझ मेरी ये पहेली
बिन बूझे इसके कैसी ये होली, कैसी दिवाली
संग मेरे तू चलते चलते गाथा अपनी बतला
तेरे नैनों की राह में भटके पथिक को राह दिखला