था वो मेरा देश जिसमे बसा करता था सोहार्द्र
आज उस देश को जला रही है इर्ष्या की अगन
देखता जिस और हूँ दिखती है बंटवारे की छवि
गणतन्त्र कहलाने वाला मायातंत्र का बना निवाला
करो या मरो था जिस देश को कभी प्यारा
आज उस देश में गूँज उठा मारो मारो का नारा
राजनीति थी जिसकी कभी सर्वोध्धार
आज वही धर्म को बाँट रही बारम्बार
धर्म के नाम पर अधर्मी बना हर वो नागरिक
काल के ग्रास को चढाता जो नरबली
कहता खुद को जो धर्मं का रक्षक
वो आज बना धर्म की राजनीति का एक प्यादा
सत्ता के मोह में बना राजनेता हिंसक
धर्म के मर्म को मोड रहा बन धर्म का शुभचिंतक
ना है उसे कोई लाज ना उसे कोई पीड़ा
मरता है गर कोई तो उसके लिए है वो कीड़ा
पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्खिन
चहुँ और दिखता है मंजर राजनीति की कुटिलता का
विस्मित हूँ मैं कि कैसी है ये राजनीति
फैला अराजकता का राज कौन सेक रहा अपनी रोटी
Comments
Kya likha hai bhai …. waah kehna bhi kam hai.