चला जब में जीवन डगर में
दिखा सर्व ओर अँधियारा मुझे
तभी दिखी दूर मुह्जे रौशनी
बढ़ चला में उसी दिशा में
पास पहुँच देखा मैंने
रौशनी थी वहाँ लालटेन की
चारो ओर उसके थे बैठे बच्चे
पढ़ रहे थे अपने पाठ
जो पूछा मैंने उनसे क्या है उनका ध्येय
बोला एक नन्हा मुझसे
दिन में करता हूँ मैं खेतों में काम
रात मास्टरजी से मैं लेता हूँ ज्ञान
विस्मित कर गयी मुझे उसकी बात
खड़ा सोच रहा था मैं यही
कि सनाढ्य घरों में बच्चे
करते हैं कुछ अलग ही
सोचो तो जीवन का है ये कैसा खेला
एक घर जिसमें है धन वैभव
रौशनी से तो है भरा-भरा
किन्तु ज्ञान का वहाँ है अभाव
दूजा घर जिसमें नहीं खाने को दाना
ना है उस घर में धन धान्य
फिर भी रात के अँधेरे में
दिखा मुझे वहाँ ज्ञान प्रकाश
फिर भी रात के अँधेरे में
दिखा मुझे वहाँ ज्ञान प्रकाश
वाह रे सरकार तेरी माया निराली
जिसे चाहिए उसके घर नहीं बिजली
क्या तुम मार रहे हो पानी में झक
देखो वहाँ कीचड़ में खिल रहा है कमल
कचरा बीनता, हल चलाता देखो बालक
रात के अँधेरे में पा रहा ज्ञान प्रकाश
वहाँ सोने के पालने में पलता वो धनी
खो रहा अपने पुरखों का धान्य
रात के अँधेरे में पा रहा ज्ञान प्रकाश
वहाँ सोने के पालने में पलता वो धनी
खो रहा अपने पुरखों का धान्य