कहते हैं आज के ये नेता भर के अपनी झोली
पेट भरने के लिए लगाओ 32 की बोली
समझ नहीं आती मुझे इनकी यह पहेली
सुन कर पक्ष उनके मेरी अंतरात्मा भी दहली
खाने को जिस ग्राम में नहीं मिलती रोटी
उस ग्राम के घर घर में मांगते ये मत की बोटी
देते दिलासा दिखा के स्वप्न पंचवर्षीय कार्यकाल का
नहीं होता फिर कभी उन्हें ध्यान उस ग्राम के हाल का
मतदान करके नागरिक चुनते अपने नेता
नेता भी ऐसे जो होते महान अभिनेता
संसद के मंच पर जो करते मारा मारी
बनते देशसेवा के नाम पर ये सब बलात्कारी
रंगमंच बना है आज फिर ये देश मेरा
देखो है फिर आया समय का वो फेरा
मर्यादा लाँघ घोंटते गला ये पत्रकारिता का
लगाते पर ये नारा संविधान की सेवा का
बैठ सत्ता की कुर्सी पर या हो विपक्ष में
नेता सकते अपनी ही रोटी जनता के जलते लहू में
हुंकार लगता है ये देश आज तुमसे तुम सुन लो
बदलाव की आंधी ला इनको तुम पाठ पढ़ा दो
मांगता है बलिदान आज देश तुमसे
चाहता है देश की तुम अपना स्वार्थ त्यागो
हुंकार है देश की अंहिंसा का तुम पथ अपनाओ
देश हित में काज करो, भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ो ।।