दौलत से तो हूँ मैं गरीब
पर हूँ खुदा के इतना करीब
जानता हूँ क्या है इंसानियत
परख लेता हूँ मैं हैवानियत
पर हूँ खुदा के इतना करीब
जानता हूँ क्या है इंसानियत
परख लेता हूँ मैं हैवानियत
दो गज ज़मीन पर सोता हूँ
दो जून रोटी से गुज़रा करता हूँ
महंगाई मुझे क्या सताएगी
मैं तो अपनी ही किस्मत का मारा हूँ
सर्द हवाओं के झोंकों में
दर अपने बंद करता हूँ
बरसात की बूंदें ना आए
यह सोच बरसाती ओढ़ सोता हूँ
ज़िन्दगी के गम गलत करने को
खुदा की इबादत करता हूँ
शराब के कारखाने में भी मैं
पानी पर गुज़ारा करता हूँ
महंगाई क्या मारेगी मुझे
मैं अपनी ही किस्मत का मारा हूँ
दौलत से तो हूँ मैं गरीब
पर मेरे खुदा के हूँ मैं करीब||