भरे ज़िंदगी ने मेरे दामन में
ना कोई हिसाब है इनका
ना ही है ज़िंदगी को गुमां
जाने किस कदर बीते वो पल
जाने कौन घड़ी हुए वो रुखसत
कि हमें यह गुमां भी ना हुआ
कि जाने कब बीत गए बरसों
दर्द भरे दामन में ज़िंदगी के
तन्हाई बसर जो करती थी
कि मानो बुला रही वह मौत को
कि जैसे फैला रही हो वीरानियाँ
फिर भी इंसान जिए जाता था
करते इंतज़ार आते कल का
करता था वो इन्तेजार हर पल
सोच सोच जीता था वह पल
फिर आई तुम ज़िंदगी में
बनकर झोंका हवा का
लाई तुम साथ अपने
मकसद-ऐ-ज़िंदगी का पैगाम
आने से तुम्हारे बवंडर उठा कुछ ऐसा
उड़ गया दामन वह, जिसमें बसर थी गम
दर्द-ऐ-तन्हाई भी जार जार हुआ
उस पल, जब तू ज़िंदगी में आई
आज दामन भरा है तेरी दुआओं से
आज इसमें बसर करती है तेरी मोहब्बत
चश्मों-आब भी अब सुख गया है
कि उसमें बसर करता है तेरा ही अक्स
अब तू है ज़िंदगी में तो खुशियाँ है
कि तुझसे ही अब मेरी ज़िंदगी है
तू आगोश में अपनी जुल्फों की
ले अक्स मेरा, मेरी ज़िंदगी बसर कर दे।।