तुम

जीवन संध्या में मिली तुम 
कुछ ऐसी सिमटी शरमाई सी
कि छवि उतर गयी ह्रदय में
तुम्हारी सादगी की
कुछ ऐसी ज्वाला जली प्रेम की
कि ह्रदय में अम्बार लगा
तुम्हें जीवनसंगिनी बनाने को 
मन मेरा मचल उठा
छवि तेरी जो ह्रदय में बनी थी
उसका जब श्रृंगार हुआ
सात फेरों के बंधन में बाँध तुम्हें
घर मैं अपने लाया 
कदम जो पड़े तुम्हारे इस घर में
इस घर का भी श्रृंगार हुआ
सूना था जो हर कोना
आने से तुम्हारे स्वर्ग हुआ
जीवनसंगिनी बन तुम अब
संग रहना सदा ही मेरे
खुशियों की जो बेला लाई हो संग
उनसे यह घर सजाए रखना|| 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *