आने से उनके कुछ लम्हे बदल से जाते हैं
उन लम्हों में हमारी ज़िंदगी बदल सी जाती है
चंद उन लम्हों की खातिर जीते हैं
कि उन लम्हों में हमारी कायनात बदल जाती है
जिन लम्हों में उनका साया नसीब होता है
उन लम्हों में हमारी तकदीर बदल जाती है
हसीं हर जर्रा हर खिजाब नज़र आता है
उस लम्हे में ज़िंदगी सिमट आती है
उन लम्हात का आलम कुछ यूँ होता है
कि खुद की खुदाई का अहसास होता है
कुछ मंज़र कदर होता है
कि उनकी नज़रों में नशा शराब का होता है
गर वो नहीं तो वो लम्हात नहीं
बिन उनके ये कायनात नहीं
उन लम्हों को जीने के लिए ऐ खुदा
ना कर हमें उनसे इस कदर जुदा