हो रही धरा की धरोहर जार जार
स्त्री का हो रहा हस ओर बलात्कार
सहिष्णुताहीन हो गया है ये संसार
घृणा और पाप का लगा है हर ओर अम्बार
हलाहल अपमान का पी रहे देव भी
दानव कर रहे हर ओर राज
सांसारिक मोह में लीं है मानव भी
दे रहा दानवों को वो करने राज
हर पल मिलता हर किसी को यहाँ अन्याय
न्यायपालिका में भी नहीं न्याय का अध्याय
रक्षक बन बैठे हैं यहाँ जनता के भक्षक
लगता है जैसे तांडव कर रहा हो तक्षक
धरा पर हर पल होता मानवता का बलात्कार
सुनता नहीं आज यहाँ कोई भी यह चीत्कार
सहिष्णुता ऋण हो गया है संसार
घृणा और पाप का लगा है हर ओर अम्बार||