चंद छंद – ३

चिंता की चिता में जलता है जीवन का दिया
उसपर मौत को बढ़ती डगर है अंधकारमय
कैसे जिए तिल तिल इस पाशविक संसार में
जहां हर पल भय सताता है जीवन राह में||
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चिता जीवन की अब बन रही चहुँ ओर
नहीं मानव जीवन का कहीं कोई ठोर
ठिकाना नहीं जहां रहे मानव शान्ति के बीच
मौत का तांडव हर डगर पर रहा जीवन को भींच||
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चिंता जीवन की कर जी रहा है मानव
संसार में जीवन प्रलोभन बढ़ा रहा है दानव
धरा को सींच रहा है रक्तपान से आज हैवान
दर कर बैठा है भगवान् राज कर रहे शैतान||
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कोडियों के मोल बिकता है आज आत्मसम्मान
लाज बेच बेच बन रहे हैं सब धनी और जगवान
ना कोई संकोच है कि समय आज है इतना बलवान
जित देखूं दीखे मुझे गधे बैठे बन बलशाली पहलवान

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