तुझसे जुदा तो हूँ मैं पर तन्हा नहीं हूँ
यादों में तेरी इस कदर मै डूबा हूँ
ना गम-ऐ-तन्हाई की फुर्सत है मुझे
ना तेरे जुदा होने का कोई गिला
तुझसे जुदा तो हूँ पर तन्हा नहीं
आलम-ऐ-तन्हाई से रूबरू नहीं हुआ
तेरी यादों के समंदर में इस कदर मैं डूबा
कुछ मंजर इस कदर बने जान-ऐ-मन
कि तेरी तस्वीर का आगोश मुझे मिला
तुझसे जुदा तो हूँ पर तन्हा नहीं
तेरे साए के आगोश में हर रात गुजारी है’
तन्हाई से जब से हमने मुंह फेरा है
तेरी जुल्फों का आसरा लिए जिए हैं
मोहब्बत से जब से हमने नाता जोड़ा है
रात-ओ-सहर तेरी ही यादों में डूबें रहते हैं
तुझसे जिदा तो हैं पर तन्हा नहीं हैं
तन्हाई भी इस कदर अब रुसवा है मुझसे
करती है शिकवा वो तेरी ही यादों का
आलम-ऐ-मोहब्बत में जो हम परवान चढ़े
तेरी ही यादों को हम अपने साथ ले बढे
तुझसे जुदा तो हूँ मैं पर तन्हा नहीं
हर लम्हा हर पल तुझसे ही जुडा हूँ मैं||