प्रकृति का तांडव

कर आँखें नम नाम दे रहे भगवान् को
मानव की गलती से अंत हुआ मानव का
प्रकृति का कर विनाश
प्रकृति को ही कोस रहे
जब जीना है गोद में प्रकृति की
तो जियो उसकी सुन्दरता में
विकृत गर करोगे प्रकृति को
तो होगा प्रलय सा विनाश ही
तांडव में प्रकृति के
मिलाप होगा काल से ही
ग्रस्त अपनी ही करनी के हुए हो
फिर प्रकृति को क्यों कोस रहे||

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