वक़्त गुजार दिया
तेरे इंतज़ार में
एक फासला तय किया
तेरे इंतज़ार में
खड़े हैं आज हम
सिफार की कगार पर
कि खत्म नहीं होता
आलम-ऐ-इंतज़ार
समां सा बंधता नज़र आता है
फिर एक स्याह रात ढलती है
दिन ये भी गुजर जाएंगे
तेरे इंतज़ार में
मंजीलें तय कर चुके
ज़िन्दगी हुई बेज़ार
इश्क हुआ रुसवा
तेरे इंतज़ार में
अब हम बा जीते हैं
कुछ यूँ सोच कर
कि दिन ये भी गुज़र जाएगा
तेरे इंतज़ार में||