बैठ धरा पर देख रहे थे
स्वर्ग सा मंजर
नाम ले भोले का
गटक रहे थे भंग
स्वर्ग सा मंजर
नाम ले भोले का
गटक रहे थे भंग
जो आनंद मिला भक्ति का
जो हुआ जीवन दर्शन
ना था कुछ ऐसा बचा
जो ना किया किसी को अर्पण
निद्रगोश में जब समाये
जग सारा लगा न्यारा
जब खुले चक्षु हमारे
हुआ असल ज्ञानार्जन
बैठ धरा पर ले भोले का नाम
भंग के रंग में किया स्वर्ग दर्शन
पर जब उतरा भंग का रंग
किया धरा को जीवन अर्पण