कान्हा कान्हा पुकारू मैं
इस कलयुग में
द्वापर के युगपुरुष को
ढूँढू मैं कलयुग में
कह चला था कभी कान्हा
“यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत
अभ्युथानम अधर्मस्य तदात्मानं श्रीजाम्यहम”
किन्तु आज नहीं आता नज़र
कान्हा कान्हा पुकारूँ में
इस कलयुग में
ढूंढूं तुझे आज में
पापियों भरे इस जग में
अधर्मी आज हो चला है मानव
पाप के पैरों तले रोंद
कर गर्व रहा अपनी कुक्रितियों पर
नाम तेरा ले फैला रहा विनाश
ना निभाता हर कोई राजधर्म
ना निभाता है कोई पौरुषधर्म
दिखता हर तरफ सिर्फ विनाश है
निभता है आज केवल हठधर्म
शरण में तेरी आया हूँ मुरलीमनोहर
प्रार्थना कर स्वीकार मेरी
समय के चक्र ने आज
फिर गुहार लगाईं तेरी
नाम तेरा पुकारता फिर रहा मैं
राह तेरी तक रहा आज मैं
अवतरित हो आज फिर एक बार
उठा चक्र कर पाप का संहार
कान्हा कान्हा पुकारूं मैं
पीड़ा ग्रसित हो कर
चारो दिशा ताकूँ मैं
बाट तेरी जोह कर||