Month: December 2014

नादाँ परिंदे

दिल दहला देने वाली घटना पर अज़ाब-ऐ-अश्क भी सूख गए आँखों में नमी तो है  पर अश्क बह नहीं सके इतना दर्दनाक मंजर देख शब्द भी हलक में अटक गए होंठों पर लफ्ज़ आते आते  जुबां पर ही सहम गए नादां परिंदे आशियाँ से उड़े थे किसी पिंजरे में फंस गए निशाना बने किसी दरिंदगी …

अब तुम हमें जीने दो

और नहीं अब और नहीं  आतंक का साया और नहींजीना है अभी जीने दो हमकोइंसानियत का खात्मा अब नहीं धर्म के नाम पर ना करो अधर्मबेगुनाहो का ना करो यूँ क़त्लजीना है अभी हमें औरइंसानियत को न यूँ जाया करो बच्चो ने क्या बिगाड़ा था तुम्हाराक्या थी उनकी खतामासूम थे वो, अनजान गुनाह सेक्यों उनपर …

प्रश्नात्मक नारी स्वरुप

आशा की वो किरण बन कर आई थी तू  और ना जाने कैसे ज्वाला बन गई जीवन अन्धकार दूर करते करते ना जाने कैसे चिता प्रज्वलित कर गई मानसिक संतुलन को स्थिर करते करते ना जाने कैसे मानस को असंतुलित कर गयी कभी बालिका, कभी भगिनी, कभी माता, कभी भार्या इस काया में थी, कब …

उम्मीद्दों में जिए हम

उम्मीद्दों के सहारे जिए हम आज हमें नाउमीदी ने है घेरा दामन तेरा पकड़ कर जिए हम आज तेरे दामन की राह में है डेरा ना कोई उम्मीद है हमें आज ज़िन्दगी से ना ज़िन्दगी ने जगाई कोई उम्मीद बस मायूसी है छाई चारो ओर एक सन्नाटा है हमें सुनाई देता जहाँ में आये थे …

आरज़ू

यूँ ही न भुला देना तू मुझको कि तेरी ही राह का मैं मुसफिर हूँ यूँ ही न ठुकरा देना तू मुझको  कि तेरा हमसफ़र बनने का ख्वाहिशमंद हूँ बहुत मुद्दतों के बाद तू है मिली मुझको यूँ ही सरे राह दामन न छोड़ देना बड़ी मुश्किलों से ये बंधन बना है यूँ ही जज्बातों …