क्या तुम शान्ति नहीं चाहते?
क्या तुम्हारे जीवन में नहीं कोई रस?
क्यों तुम फैलाते हो आतंक?
क्या यही है तुम्हारा धर्म?
क्या नहीं चाहते तुम जीना?
क्या नहीं चाहते लाना जीवन में नवरस?
क्या तुम ईश्वर को नहीं पूजते?
क्या तुम धर्मान्धता में हो डूबे?
क्यों फैलाते हो तुम यूँ आतंक?
क्या नहीं चाहते धरती पर शान्ति?
क्या यही लिखा है प्रार्थनाओं में तुम्हारी?
क्या यही है धर्म की परिभाषा?
क्या जीवन में और नहीं कोई लक्ष्य?
क्या नहीं लाना चाहते तुम जीवन में नवरस?
क्यों फैलाते हो अशांति?
क्यों मारते हो मानवता को?
क्यों फैलाते हो द्वेष?
क्यों करते हो दुराचार?
क्यों हो तुम पथभ्रष्ट?
क्यों करते हो धर्म को कलंकित?
क्यों नहीं जीते और जीने देते?
क्यों करते हो ईश्वर पर दोषारोपण?
यही है आज का सच कि तुम पथभ्रष्ट हो
हाँ तुम पथभ्रष्ट हो, अपने लक्ष्य से अनजान हो
सुन किसी और का धर्मोपदेश
सुन किसी और की धर्मव्याख्या
चल पड़े हो तुम अन्धकार की और
ना राह वो सही है, ना है वो सरल
हर पथ उस राह का
जाता है मृत्यु की और
जीवन को नीरस कर
ना चलो तुम उस राह पर
जीवन में नवरस का श्रृंगार करो
जीवन में मधुरता का रस घोलो
नहीं कोई धर्म कहता
कि तुम जीवन से छेड़छाड़ करो
हर धर्म हर ईश्वर यही कहता है
मानवता का तुम श्रृंगार करो
प्रेम प्रतिज्ञा कर आज तुम
आतंक का साथ छोडो
दुराचारी का साथ छोड़
मानवता के सृजन में
आज तुम योगदान करो||