डर की ना कोई दवा है
ना डर का कोई इलाज
यह तो सिर्फ पनपा है
अपने ही खयालो के तले
डर के आगे ना हार है ना जीत
डर के सामने ना है किसीका वज़ूद
डर रहता है दिलों में छुप कर
नहीं किसी डर का कोई अंत
डर कर जीने वालों
डर कर जीना छोडो
देखो अपनी आँखें खोल कर
ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत है
डर को छोड़ किनारे
ज़िन्दगी की कश्ती कहना सीखो
डर से छुप घर में ना बैठो
बाहर की दुनिया देखो कितनी शालीन है
डर से ना आज तक कोई जीत पाया है
ना ही डर को दरकिनार कर कोई जी पाया है
लेकिन तुम अग्गज़ करों अपने अंदाज़ से
लड़ो डर से आज तुम, कर खुद पर भरोसा ||