बेटी

ये कैसा राष्ट्र है मेरा
ये कैसा देश है मेरा
जहाँ सोना है माँ की गोद में
छुपना है माँ के आँचल में
और खाना है माँ के हाथ से
पर बेटी से नहीं भरना घर

ये कैसी सोच है हमारी
ये कैसा समाज है हमारा
जहाँ राखी बांधने को बहन चाहिए
साथ खेलने को सखी चाहिये
और वंश बढ़ाने को बीवी चाहिए
पर बेटी किसी को नहीं चाहिए

अरे संकीर्ण सोच के स्वामियों
जरा ज्ञान चक्षु अपने खोलो
चहुँ दिशा में देखो अपने
अपने मष्तिस्क को टटोलो
अरे देखो सारे रिश्तों की डोर
हाथ बढ़ाओ बेटियों की ओर

कोख से उनको इस संसार में आने दो
की एक कोख जपेगी तभी दूसरी बनेगी
भविष्य में मान,बहन, बीवी चाहिए यदि
तो जनमने दो हर घर में बेटी अभी 
नहीं होगी बेटी अगर तुम्हारी 
तो मानो कम होगी एक माँ, बहन, बीबी 

अरे बेटी तो लक्ष्मी का स्वरुप है 
समय आने पर रणचंडी का रूप है 
अपने बाप का मान है वो 
अपनी माँ का नाम है वो 
एक बेटी कितना सुख लाती है जीवन में 
जानोगे तभी जब नहीं मारोगे उसे कोख में!!

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