Month: September 2015

कलम आज फिर आमादा है

कलम आज फिर आमादा है  अपना रंग कागज़ पर बिखेरने को  रोक नहीं पा रहे हम आज कलम को  जो लिख रही हमारे ख्यालों को  ना जाने क्यों हाथ भी साथ नहीं  ना जाने क्यों कर रहे ये मनमानी  आज कलम फिर आमादा है  लिखने तो आवाज़ हमारी  हर पल सोचते हैं खयालों को रोकना  …

वेदना विरह की

व्यथित आज मन है मेरा  व्यथित यही चित्त  व्यथा मस्तिस्क में रह रही  हलचल ये जीवन में मचा रही  कारक नहीं समझ में आया  किया चिंतन मनन बहुत  देवों की भी कि आराधना  “नहीं पता” है उनका भी कहना  चेष्टा थी कि तुमसे पूछूँ  संग बैठ तुम्हारे मैं सोचूं  किन्तु वृद्धि हुई पीड़ा में और भी  …

पिया मिलन

नैन ताके राह किस गुजरिया की  छोड़ मँझधार हुई मैं पिया की  नहीं मोहे अब बैर किसी से  नाहीं चाहूँ मैं देवोँ की डगरिया  पिया संग है मोहे अब जीना  पिया के लिए धड़के अब मोरा जियरा  रूठे देव तो रुठने दो उनको  मनाऊँगी उनको पिया माना है जिनको  कहे अब नैन ताके राह तिहारी  …

बिछड़ तोसे जिया नहीं जाए

बदरा छाए, नैनो में बदरा छाएआज पीह से मिलन की आस मेंनैनो में बदरा छाए, बदरा छाएआज फिर मिलन की आस में कहें तोसे कैसे पियाकहाँ कहाँ ढूंढे तुझे जिया, ढूंढे जिया……… कहूँ कैसे, थामूँ कैसे, रोकूँ कैसेनीर जो बरसे नैनो से, नैनो से नीर जो बरसेबदरा छाए तोसे मिलन की आस मेंनैना नीर बहाए …

घनघोर घटा छाई

घनघोर घटा छाई  रे, घनघोर घटा छाई  रेमेरे मीत के मिलन की बेला आई रेआई रे मिलन की बेला आई रेघनघोर घटा छाई रे – २ मन व्याकुल हो चला, मन व्याकुल हो चलाना जाने कौन चितचोर इसे मिलाजाने कौन दिशा संग ये किसके चलामन व्याकुल हो चला – २ अब कित जाऊं मैं, कि घनघोर घटा छाई …

अपनो में बेगाने

अफ़सुर्दा हुए जाते हैं अफसानों में  अजनबी आज बन बैठे हैं हम अपनों में  बेगानो से क्या शिकवा करें अब  अपने ही साथ नहीं हमारे जब  बैठ बेगानो में तन्हा बसर करते थे  अब तो अपनों में खुद बेगाने लगते हैं  साथ ना जाने कहाँ छूट गया हमसे  अब तो बस सवालों में सहूलियत ढूंढते हैं  …

शिवामृत

आज मधुशाला में इतनी मधु नहींकि बुझ जाए जीवन की प्यासकिस डगर तू चलेगा राहीकिस राह की कैसी आसपाने को क्या पाएगा चलतेबैठ यहाँ, यहीं बनाएं एक शिवालाक्यों ढूँढू मैं कहीं कोई मधुशालाआ पीते हैं बैठ यहाँ शिवामृत का प्याला

आरक्षण का अभिशाप

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई  बाँट चुके भगवान को  धरती बांटी अम्बर बांटा  अब ना बांटो इंसान को  धर्म स्थानो पर लहू बहाया  कर्मभूमि को तो छोड़ दो  ज्ञान के पीठ में अब तुम  ज्ञान का सागर मत बांटो  जाट गुज्जर पाटीदार जो भी हो  इसी धरा की तुम संतान हो  बहुत हो चुके बंटवारे धरा के  अब और …