कलम आज फिर आमादा है

कलम आज फिर आमादा है 

अपना रंग कागज़ पर बिखेरने को 
रोक नहीं पा रहे हम आज कलम को 
जो लिख रही हमारे ख्यालों को 
ना जाने क्यों हाथ भी साथ नहीं 
ना जाने क्यों कर रहे ये मनमानी 
आज कलम फिर आमादा है 
लिखने तो आवाज़ हमारी 
हर पल सोचते हैं खयालों को रोकना 
ना जाने क्यों दिमाग दुरुस्त नहीं आज 
कलम आज फिर आमादा है 
फिर आज दिमाग पर करने को काबू 
हर कोशिश है हमारी नाकाम 
ख़याल बन शब्द बिखेर रहे स्याही 
कैसे रोकें इन हाथों को 
जिनकी डोर आज है कलम के साथ 

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