व्यथित आज मन है मेरा
व्यथित यही चित्त
व्यथा मस्तिस्क में रह रही
हलचल ये जीवन में मचा रही
कारक नहीं समझ में आया
किया चिंतन मनन बहुत
देवों की भी कि आराधना
“नहीं पता” है उनका भी कहना
चेष्टा थी कि तुमसे पूछूँ
संग बैठ तुम्हारे मैं सोचूं
किन्तु वृद्धि हुई पीड़ा में और भी
जब जाएगा चेतन तुम्हारी विरह में
वेदना विरह की है ये जाना
व्यथा जुडी है वेदना से माना
देव भी अनभिज्ञ थे इससे
क्योंकि तार कहीं जुड़े थे तुमसे