Month: November 2015

ना आज कोई रुख़्सार

नज़रों के सामने हमने वो देखा है हर हस्ती को आज हँसते देखा है ख़ुशनुमा आज हर रूह है शबनम भी आज चमकती चाँद सी है फैला है उजाला हर और  बयार भी हल्की हल्की बहती है आज क़ुदरत का नग़मा सुन रहा मैं हर और ना किसी की आज तवज्जो है ना कोई कर …

कैसी ईश्वर की श्रिश्टी

साँझ पड़े बैठा नदिया किनारे सोच रहा मैं बैठ दरख्त के सहारे कितनी सरल कितनी मधुर है ये बेला है कौन सा ईश्वर का ये खेला संगीतमय है जैसी ये लहरों की अठखेलियाँ कितनी मद्धम है पंछियों की बोलियाँ कहीं दूर धरा चूमता गगन कौन से समय में लगाई ईश्वर ने इतनी लगन कितनी सुहानी …