कुछ दूर निकल आये हैं

कुछ दूर निकल आये हैं घर की खोज में 
अकेले ही निकल आये हैं  
एक नए घर की खोज में 
साथ अब ढूंढते है तेरा घर की खोज में 
एक था वो दिन जब रहते थे तेरी छाँव में 
फिर दैत्यों ने किया दमन तेरी गोद में 
लहू की नदियां बहाई, तेरी धरा पर 
बहनो की अस्मिता लूटी, तेरी धरा पर 
आज फिर एक बार मुंह खोला उन्होंने 
घर से हमें निकाल हमें दोषित किया उन्होंने 
हे शिवा क्या यही थी तेरी इच्छा 
क्या विनाश का तांडव लगा तुझे सच्चा 
दो दशक बीत गए हमें यूँ निकल कर 
फिर भी घर का पता ढून्ढ रहे तेरी गोद में 
कुछ दूर निकल आये हैं घर की खोज में 
आज घर भी बाट जोह रहे, हमारे विलोप में॥ 

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